कोशिका झिल्ली (Cell Membrane)
हेलो!दोस्तो आज हम बात करेंगे कोशिका झिल्ली (Cell Membrane) के बारे में।
कोशिका झिल्ली (Cell Membrane)-
सभी कोशिकाओं में जीवद्रव्य के चारों ओर विभेदक पारगम्य, विद्युत आवेशित, चयनात्मक झिल्ली पायी जाती है, जो मुख्यतः वसा एवं प्रोटीन से बनी होती है, जिसे सी. क्रेमर एवं नेगेली (1855) ने कोशिका कला एवं प्लोव ने जीवद्रव्य कला कहा। जीवद्रव्य कला की संरचना के बारे में विभिन्न मत प्रचलित है-
1.कोशिका कला-सेण्डविच प्रतिरूप-
सर्वप्रथम डेनीयली एवं डॉवसन (1938) ने इसकी संरचना सेंडविच समान बतायी थी। जिसमें दो सघन प्रोटीन परतों के बीच वसा का स्तर पाया जाता है। प्रोटीन परतें 20-25A मोटी होती हैं जबकि वसा का स्तर जो इनके बीच में स्थित होता है उसकी मोटाई 30-35A होती है। जीवद्रव्य कला 70-80A मोटी एकक परत होती है। प्रोटीन परतें एक अणु मोटी एवं जलस्नेही (Hydrophilic) होती हैं। फॉस्फोलिपिड (वसा) की परत में अणुओं की दो पंक्तियां विपरीत दिशा की ओर होती हैं। प्रत्येक फॉस्फोलिपिड अणु में एक जलविरागी (Hydrophobic) अध्रुवीय सिरा बीच की तरफ होता है।
2.एकक या इकाई कला प्रतिरूप (Unit Membrane model)-
इसके पश्चात रॉबर्टसन (1958) ने जीवद्रव्य कला की संरचना के बारे में एकक या इकाई कला प्रतिरूप (Unit Membrane model) दिया जिसके अनुसार यह वसा एवं प्रोटीन से बनी 70-80A मोटी इकाई कला या एकक झिल्ली होती है। विभिन्न कोशिकाओं में यह एक या दो स्तरों में पायी जाती है। जैसे हरित लवक, माइटोकॉन्ड्रिया, केन्द्रक में दोहरी, लाइसोसोम, स्फीरोसोम एवं रिक्तिका में एकल परत के रूप में पायी जाती है।
3.कोशिका कला-तरल मोजेक प्रतिरूप-
कोशिका झिल्ली या जीवद्रव्य कला की क्रियाविधि को आधार बनाकर सिंगर एवं निकॉलसन (1972) ने तरल मोजेक प्रतिरूप (Fluid Mosaic Model) प्रस्तुत किया। जिसमें उन्होंने बताया कि जीवद्रव्य कला 75A मोटी लिपिड एवं प्रोटीन से बनी झिल्ली होती है। झिल्ली के भीतरी भाग में लिपिड के दो स्तर होते हैं। प्रत्येक स्तर के बाहर की तरफ जलस्नेही (हाइड्रोफिलिक) भाग एवं बीच में जलविरागी (हाइड्रोफोबिक) भाग होता है। इसकी मोटाई 35A होती है। कला में प्रोटीन दो प्रकार से लगे रहते हैं। एक बाह्य या परिधीय प्रोटीन (Extrinsic proteins) जो दोनों सतहों पर एक अणु मोटी तह बनाते हैं तथा दूसरे कुछ आंतरिक या समाकल प्रोटीन (Intrinsic proteins) जो वसीय परत के बीच में धंसे होते हैं एवं छिद्र युक्त दीवार बनाते हैं। इन्हीं प्रोटीनों व वसा अणुओं की सहायता से कोशिका झिल्ली पदार्थों के आवागमन को नियन्त्रित करती है। आवश्यक पदार्थों को कोशिका के अन्दर या बाहर निकालने का कार्य इन्हीं समाकलन प्रोटीनों के माध्यम से सम्पादित होता है। जिसमें अवशोषण, श्रावण या विसर्जन कार्य प्रमुख है। इस प्रकार कोशिका झिल्ली चयनात्मक झिल्ली की तरह कार्य करती है। इस मॉडल के अनुसार लिपिड्स के अणु अर्ध-तरल (Semi fluid) अवस्था में रहते हैं तथा समाकलन प्रोटीनों के साथ मोजेक (पच्चीकारी) सांचे में व्यवस्थित रहते हैं।
कोशिका झिल्ली (Cell Membrane)-
सभी कोशिकाओं में जीवद्रव्य के चारों ओर विभेदक पारगम्य, विद्युत आवेशित, चयनात्मक झिल्ली पायी जाती है, जो मुख्यतः वसा एवं प्रोटीन से बनी होती है, जिसे सी. क्रेमर एवं नेगेली (1855) ने कोशिका कला एवं प्लोव ने जीवद्रव्य कला कहा। जीवद्रव्य कला की संरचना के बारे में विभिन्न मत प्रचलित है-
1.कोशिका कला-सेण्डविच प्रतिरूप-
सर्वप्रथम डेनीयली एवं डॉवसन (1938) ने इसकी संरचना सेंडविच समान बतायी थी। जिसमें दो सघन प्रोटीन परतों के बीच वसा का स्तर पाया जाता है। प्रोटीन परतें 20-25A मोटी होती हैं जबकि वसा का स्तर जो इनके बीच में स्थित होता है उसकी मोटाई 30-35A होती है। जीवद्रव्य कला 70-80A मोटी एकक परत होती है। प्रोटीन परतें एक अणु मोटी एवं जलस्नेही (Hydrophilic) होती हैं। फॉस्फोलिपिड (वसा) की परत में अणुओं की दो पंक्तियां विपरीत दिशा की ओर होती हैं। प्रत्येक फॉस्फोलिपिड अणु में एक जलविरागी (Hydrophobic) अध्रुवीय सिरा बीच की तरफ होता है।
2.एकक या इकाई कला प्रतिरूप (Unit Membrane model)-
इसके पश्चात रॉबर्टसन (1958) ने जीवद्रव्य कला की संरचना के बारे में एकक या इकाई कला प्रतिरूप (Unit Membrane model) दिया जिसके अनुसार यह वसा एवं प्रोटीन से बनी 70-80A मोटी इकाई कला या एकक झिल्ली होती है। विभिन्न कोशिकाओं में यह एक या दो स्तरों में पायी जाती है। जैसे हरित लवक, माइटोकॉन्ड्रिया, केन्द्रक में दोहरी, लाइसोसोम, स्फीरोसोम एवं रिक्तिका में एकल परत के रूप में पायी जाती है।
3.कोशिका कला-तरल मोजेक प्रतिरूप-
कोशिका झिल्ली या जीवद्रव्य कला की क्रियाविधि को आधार बनाकर सिंगर एवं निकॉलसन (1972) ने तरल मोजेक प्रतिरूप (Fluid Mosaic Model) प्रस्तुत किया। जिसमें उन्होंने बताया कि जीवद्रव्य कला 75A मोटी लिपिड एवं प्रोटीन से बनी झिल्ली होती है। झिल्ली के भीतरी भाग में लिपिड के दो स्तर होते हैं। प्रत्येक स्तर के बाहर की तरफ जलस्नेही (हाइड्रोफिलिक) भाग एवं बीच में जलविरागी (हाइड्रोफोबिक) भाग होता है। इसकी मोटाई 35A होती है। कला में प्रोटीन दो प्रकार से लगे रहते हैं। एक बाह्य या परिधीय प्रोटीन (Extrinsic proteins) जो दोनों सतहों पर एक अणु मोटी तह बनाते हैं तथा दूसरे कुछ आंतरिक या समाकल प्रोटीन (Intrinsic proteins) जो वसीय परत के बीच में धंसे होते हैं एवं छिद्र युक्त दीवार बनाते हैं। इन्हीं प्रोटीनों व वसा अणुओं की सहायता से कोशिका झिल्ली पदार्थों के आवागमन को नियन्त्रित करती है। आवश्यक पदार्थों को कोशिका के अन्दर या बाहर निकालने का कार्य इन्हीं समाकलन प्रोटीनों के माध्यम से सम्पादित होता है। जिसमें अवशोषण, श्रावण या विसर्जन कार्य प्रमुख है। इस प्रकार कोशिका झिल्ली चयनात्मक झिल्ली की तरह कार्य करती है। इस मॉडल के अनुसार लिपिड्स के अणु अर्ध-तरल (Semi fluid) अवस्था में रहते हैं तथा समाकलन प्रोटीनों के साथ मोजेक (पच्चीकारी) सांचे में व्यवस्थित रहते हैं।
तरल मोजेक प्रतिरूप (Fluid Mosaic Model)
प्लाज्मा झिल्ली के रूपान्तरण- जन्तु कोशिकाओं में कभी-कभी कुछ विशेष कार्य हेतु संरचनाओं का निर्माण होता है जिनमें से प्रमुख निम्नलिखित
हैं -
1. एपीथीलियम कोशिकाओं में अवशोषण की सतह का क्षेत्रफल बढ़ाने के लिये उनकी कोशिका झिल्ली अंगुलीनुमा उभार बनाती है जो माइक्रोविलाई कहलाते हैं।
2. कोशिकाओं की यांत्रिक सामर्थ्य बढ़ाने हेतु झिल्ली पर अनेक धागेनुमा संरचनायें बनती है जिनको डेस्मोसोम एवं उनमें पाये जाने वाले तंतुओं को टोनोफाइब्रिल्स कहते हैं। 3. कोशिकाओं में निकटतम सम्पर्क बनाने के लिए कभी-कभी कोशिका झिल्ली पर प्रवर्धक समान रचनाएँ बन जाती है जिसे इन्टर डीजीटेशन कहते हैं।
जीवद्रव्यकला या कोशिका झिल्ली के कार्य (Functionsofplasma membrane)-
1. कोशिका झिल्ली कोशिका को निश्चित आकृति एवं आकार प्रदान करती है।
2. कोशिकांगों की सुरक्षा करती है।
3. कोशिका झिल्ली चयनात्मक व अर्धपारगम्य झिल्ली की तरह कार्य करती हैं इसके द्वारा पदार्थों का व जल संवहन निम्न दो विधियों से होता है-
(अ) निष्क्रिय परिवहन-इसमें पदार्थों का स्थानान्तरण अपनी अधिक सांद्रता से कम सांद्रता की ओर होता है। इसमें अतिरिक्त बाहरी ऊर्जा की आवश्यकता नहीं होती है। जैसे विसरण, परासरण आदि।
(ब) सक्रिय परिवहन- रिििििििििििििि इसमें सांद्रण विभव के विपरीत पदार्थ के अणु अपनी कम सांद्रता से अधिक सांद्रता की ओर गति करते हैं। इस क्रिया में अतिरिक्त ऊर्जा ए.टी.पी. के रूप में खर्च होती है। इस क्रिया में वाहक प्रोटीन अथवा परमिऐजेज वाहक का कार्य करते हैं।
4. यह कोशिकीय आसंजन में सहायता करती है। 5. जीवाणु कोशिकाओं में कोशिका झिल्ली पर श्वसन एंजाइम पाये जाते हैं। I 6. अंतःग्रहण (ऐन्डोसाइटोसिस)- कोशिका झिल्ली द्वारा बाहरी पदार्थों को घेरकर पाचन करने को ऐन्डोसाइटोसिस कहा जाता है। इस क्रिया में ठोस पदार्थ हो तो कोशिका भक्षण (फेगोसाइटोसिस) और तरल पदार्थ हो तो उसे कोशिकापूयन (पिनोसाइटोसिस) कहते हैं। Vvv. 7. कोशिका द्वारा अनावश्यक पदार्थों को कोशिका झिल्ली के माध्यम के बाहर निकाले जाने की क्रिया को बहिर्कोशिकालयन (एक्सोसाइटोसिस) कहा जाता है।
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