दोहरी कलाबद्ध कोशिकांगो लवको व माइटोकॉन्ड्रिया की पुरी जानकारी।
हेलो!दोस्तो आज हम बात करेंगे दोहरी कलाबद्ध कोशिकांगो लवको व माइटोकॉन्ड्रिया के बारे मे।
लवक (Plastids)-
प्लास्टिड्स या लवकों की खोज तथा नामकरण हेकेल (1865) ने किया। शिम्पर (1885) ने प्रकाश संश्लेषण में भाग लेने वाले लवकों को क्लोरोप्लास्ट (हरितलवक) नाम दिया। लवकर यूकैरियोटिक पादप कोशिकाओं में पाये जाने कोशिका झिल्ली से परिबद्ध कोशिकांग है जो कोशिका द्रव्य में बिखरे रहते हैं। ये प्रायः चपटे, गोलाकार या अन्य मिलती-जुलती आकृति की रचनाएं हैं। इनमें कई जैव रासायनिक पदार्थों का संश्लेषण अथवा संचयन पाया जाता है। जन्तुओं, कवकों व प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं में लवक नहीं पाये जाते हैं। नील हरित शैवालों में आदिम प्रकार की समकक्ष रचनाएं पायी जाती हैं, जिन्हें वर्णकीलवक या वर्णकघर (Chromatophores) कहते हैं।
लवक (Plastids)के प्रकार-
लवक वर्णक विहीन अथवा वर्ण युक्त हो सकते हैं। वर्णकों के प्रकार के आधार पर लवक प्रमुखतः तीन प्रकार के होते हैं-
1. अवर्णी लवक (Leucoplast)
2.वर्णी लवक (Chloroplast)
3. हरित लवक (Choroplast)
1. अवर्णी लवक (Leucoplast) :-
शिम्पर (1885) ने वर्णक विहीन लवकों को ल्यूकोप्लास्ट छड़ाकार गोलाकार या अनियमित आकार के होते हैं तथा अधिकतर पादपों के संग्रहकारी अंगों जैसे भूमिगत अंग, फल आदि में पाये जाते हैं। इनमें संग्रहित कार्बनिक पदार्थ के अनुसार ये पुनः तीन प्रकार के होते हैं अधिकांश में लेमिली (Lamellae) पाये जाते हैं कहा।
(i) मंडलवक (Amyloplast) :-
इनमें स्टार्च का संचयन व संघनन होता है।
(||) तेल लवक (Elaioplast) :-
इनमें तेल या वसा के रूप में भोजन संचित रहता है। सरसों, मूंगफली के बीजों में पाये जाते हैं।
(III) एल्यूरोप्लास्ट या प्रोटोप्लास्ट (Aleuroplast):-
Hइनमें प्रोटीन कण या गुलिकाएं संचित होती हैं। दालों के बीज पत्रों में पाये जाते हैं। जब किसी पादप को लम्बे समय तक अंधेरे में रखा जाता है तो इसमें रंगहीन ऐटियोप्लास्ट (Etioplast) बन जाते हैं। इनमें वसायें व वाष्पशील तेल होते हैं। प्रकाशित होने पर ये पुनः परिवर्तित हो जाते हैं।
2. वर्णीलवक (Chromoplast) :-
Gइनमें पर्णहरित को छोड़कर अन्य रंग जैसे लाल, नारंगी, रंग के केरोटीन तथा पीले रंग के जैथोफिल वर्णक पाये जाते हैं; इन लवकों में लैमैली नहीं पायी जाती है। इनमें प्रकाश संश्लेषण नहीं होता है। वर्णी लवक फलों के छिलकों एवं पुष्पों की दलों की कोशिकाओं में मिलते हैं। टमाटर, गाजर, लाल मिर्च में देखा जा सकता है। ये पुष्पों के दलों को विभिन्न रंगप्रदान करते हैं, जिससे कीटों के आकर्षित होने से परागण की क्रिया विधि होती हैं।
3. हरित लवक (Chloroplast):-
_क्लोरोप्लास्ट शब्द का गठन शिम्पर (1885) ने किया ये पर्णहरित युक्त हरे रंग के लवक हैं जो प्रकाश संश्लेषण का कार्य करते हैं। अधिकांश शैवाल कोशिकाओं में एक हरित लवक होता है जबकि विकसित पादपों की प्रति कोशिका में 20 से 40 हरित लवक मिलते हैं। उच्च पादपों में हरित लवक गोल, अण्डाकार अथवा डिस्क के समान होते हैं जबकि शैवालों में ये भिन्न-भिन्न आकृति के होते हैं। जैसे क्लेमाइडोमोनास में प्यालेनुमा, स्पाइरोगाइरा में सर्पिल रिबन समान, यूलोथ्रिक्स में मेखलाकार जिग्नीमा में ताराकार आकृति के होते हैं। आवश्यकता एवं परिस्थिति के अनुसार विभिन्न लवक एक दूसरे प्रकार में परिवर्तित हो जाते हैं। जैसे अपरिपक्व मिर्च व टमाटर पकने पर हरे से लाल हो जाते हैं।क्लोरोप्लास्ट शब्द का गठन शिम्पर (1885) ने किया ये पर्णहरित युक्त हरे रंग के लवक हैं जो प्रकाश संश्लेषण का कार्य करते हैं। अधिकांश शैवाल कोशिकाओं में एक हरित लवक होता है
जबकि विकसित पादपों की प्रति कोशिका में 20 से 40 हरित लवक मिलते हैं। उच्च पादपों में हरित लवक गोल, अण्डाकार अथवा डिस्क के समान होते हैं जबकि शैवालों में ये भिन्न-भिन्न आकृति के होते हैं। जैसे क्लेमाइडोमोनास में प्यालेनुमा, स्पाइरोगाइरा में सर्पिल रिबन समान, यूलोथ्रिक्स में मेखलाकार जिग्नीमा में ताराकार आकृति के होते हैं। आवश्यकता एवं परिस्थिति के अनुसार विभिन्न लवक एक दूसरे प्रकार में परिवर्तित हो जाते हैं। जैसे अपरिपक्व मिर्च व टमाटर पकने पर हरे से लाल हो जाते हैं।क्लोरोप्लास्ट शब्द का गठन शिम्पर (1885) ने किया ये पर्णहरित युक्त हरे रंग के लवक हैं जो प्रकाश संश्लेषण का कार्य करते हैं। अधिकांश शैवाल कोशिकाओं में एक हरित लवक होता है जबकि विकसित पादपों की प्रति कोशिका में 20 से 40 हरित लवक मिलते हैं। उच्च पादपों में हरित लवक गोल, अण्डाकार अथवा डिस्क के समान होते हैं जबकि शैवालों में ये भिन्न-भिन्न आकृति के होते हैं। जैसे क्लेमाइडोमोनास में प्यालेनुमा, स्पाइरोगाइरा में सर्पिल रिबन समान, यूलोथ्रिक्स में मेखलाकार जिग्नीमा में ताराकार आकृति के होते हैं। आवश्यकता एवं परिस्थिति के अनुसार विभिन्न लवक एक दूसरे प्रकार में परिवर्तित हो जाते हैं। जैसे अपरिपक्व मिर्च व टमाटर पकने पर हरे से लाल हो जाते हैं।
माइटोकॉन्ड्रिया (Mitochondria) (बहुवचन):-
@(Mitos thread, chondrion granule; |mitochondria =एकवचन); सूत्रकणिका कोलीकर (1990) ने सर्वप्रथम इन्हें कीटों की रेखित शियों में देखा था। फ्लेमिंग (1882) ने उन्हें फाइलिया तथा शार. अल्टमान (1894) ने बायोब्लास्ट नाम दिया। इनकी खोज श्रेय फ्लेमिंग एवं अल्टमान को दिया जाता हैं। सी.बेंडा 897) ने इन्हें माइटोकॉन्ड्रिया नाम दिया। उसने इनको न्ड्रियोसोम (Chondr iosome) भी कहा। एफ.मिविस 904) ने सर्वप्रथम पादप कोशिकाओं में इनकी उपस्थिति देखी।
संरचना (Structure):-
@प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं के अतिरिक्त ये सभी। इसे कोशिकाओं में पाये जाते हैं। ये गोलाकार, छड़ी नुमा अथवा ये धागेनमा संरचना में होती हैं। इनकी औसत लम्बाई माइक्रोन और व्यास 0.5 से 1 माइक्रोन होता हैं। सामान्यतः इनकी संख्या एक कोशिका में 50 से 5000 तक हो सकती हैं। माइक्रो स्टोरी नामक शैवाल की कोशिका में एक एवं कछ एक कोशिकीय जीवों में 5 लाख तक इनकी संख्या पायी जाती हैं। माइटोकॉन्ड्रिया एक दोहरी झिल्ली से परिबद्ध कोशिकांग है। बाह्यकला सपाट जबकि अंतःकला में कई अंगुली के समान उभार पाये जाते हैं जो किरीटी, शिखी या क्रिस्टी (Cristae; एकवचन Crista) कहलाते हैं। अंतःकला एवं बाह्यकला के बीच 6-8nm की दूरी होती हैं। क्रिस्टल के कारण माइटोकॉन्ड्रिया की
अंतःकला के बीच के स्थान को परिकला अवकाश या परिसूत्रकणिकीय अवकाश (Perimitochondrial space) कहते हैं। जिसमें विभिन्न प्रकार के श्वसन एंजाइम पाये जाते हैं। जबकि अन्दर की ओर जैल समान, प्रोटीन युक्त व समांगी पदार्थ भरा रहता है जिसे मैट्रिक्स या आधात्री कहते हैं।
क्रिस्टल की सतह पर 85A व्यास के कण 100A की दूरी पर स्थित होते हैं जिनका आकार टेनिस क्रिकेट नुमा होता है जिनको प्रारम्भिक कण या ऑक्सीसोम (Oxysome) या F, कण कहते हैं। ऑक्सीसोम आधार, वृत एवं सिर तीन भागों से मिलकर बनते हैं। ये फास्फोलिपिड एवं प्रोटीन से बने होते हैं। ऑक्सीसोम में ATP सिंथेटेस एंजाइम ऑक्सीकारक फास्फोरिलीकरण का कार्य करता है। अंत:काल पर श्वसन शृंखला एवं ऑक्सीकारक फॉस्फोरिलीकरण क्रिया के लिए उत्तरदायी एंजाइम भी पाये जाते हैं। मैट्रिक्स में डीएनए, आरएनए,705 प्रकार के राइबोसोम, जल, लवण एवं क्रेब्स चक्र के लिए आवश्यक सभी एंजाइम होते हैं। माइटोकॉन्ड्रिया का डीएनए गोलाकार, नग्न होता है। इसमें G+C की मात्रा A+T की तुलना में अधिक होती हैं। माइटोकॉन्ड्रिया में अपने समान नये माइटोकॉन्ड्रिया बनाने अर्थात स्वतः जनन की क्षमता होती है। यह क्षमता केवल कोशिका द्रव्य के अन्दर रहकर ही है, स्वतंत्र रूप से संभव नहीं हैं। अतः इनको अर्घस्वायत्तशासी (Semi Autonomous) कोशिकांग रासायनिक संगठन में प्रोटीन 65-70%, फॉस्फोलिपिड 25%, आरएनए, 0.5% कुछ मात्रा में डीएनए पाया जाता
माइटोकॉन्ड्रिया के कार्य (Function of Mitochondria):-
G(1) माइटोकॉन्ड्रिया को कोशिका का 'पावर हाऊस' या ऊर्जा घर' कहा जाता है। इसमें ऑक्सीश्वसन के दौरान निकलने वाली ऊर्जा एडिनोसीन ट्राई फॉस्फेट (ATP) के रूप में संचित रहती है। जब कोशिका को विभिन्न जैविक क्रियाओं के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती हैं तो यह एडिनोसीन ट्राई फॉस्फेट (ATP) एडिनोसीन डाई फॉस्फेट फॉस्फेट अणु एवं ऊर्जा में टूट जाती है।
2) क्रेब्स चक्र-ग्लाइकोलाइसिस के द्वारा ग्लूकोज अणु दो पाइरूविक अणुओं में टूट जाता है जिनका ऑक्सीकरण एक चक्रिय पथ के रूप में मैट्रिक्स में उपस्थित विभिन्न श्वसन एंजाइमों के द्वारा होता है। जिसे क्रेब्स चक्र कहते हैं।
(3) ऑक्सीफॉस्फोरिलेशन- यह क्रिया ऑक्सीसोम कणों में होती है जो माइटोकॉन्ड्रिया की भीतरी झिल्ली पर स्थित होते हैं। इस क्रिया में NADPH,, NADH, एवं FADH, का ऑक्सीकरण होकर ATP का निर्माण होता है।
(4) माइटोकॉन्ड्रिया प्रकाशीय श्वसन (Photorespiration) की क्रिया में भाग लेने वाला एक प्रमुख कोशिकांग है।
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लवक व प्रकार |
लवक (Plastids)-
प्लास्टिड्स या लवकों की खोज तथा नामकरण हेकेल (1865) ने किया। शिम्पर (1885) ने प्रकाश संश्लेषण में भाग लेने वाले लवकों को क्लोरोप्लास्ट (हरितलवक) नाम दिया। लवकर यूकैरियोटिक पादप कोशिकाओं में पाये जाने कोशिका झिल्ली से परिबद्ध कोशिकांग है जो कोशिका द्रव्य में बिखरे रहते हैं। ये प्रायः चपटे, गोलाकार या अन्य मिलती-जुलती आकृति की रचनाएं हैं। इनमें कई जैव रासायनिक पदार्थों का संश्लेषण अथवा संचयन पाया जाता है। जन्तुओं, कवकों व प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं में लवक नहीं पाये जाते हैं। नील हरित शैवालों में आदिम प्रकार की समकक्ष रचनाएं पायी जाती हैं, जिन्हें वर्णकीलवक या वर्णकघर (Chromatophores) कहते हैं।
लवक (Plastids)के प्रकार-
लवक वर्णक विहीन अथवा वर्ण युक्त हो सकते हैं। वर्णकों के प्रकार के आधार पर लवक प्रमुखतः तीन प्रकार के होते हैं-
1. अवर्णी लवक (Leucoplast)
2.वर्णी लवक (Chloroplast)
3. हरित लवक (Choroplast)
1. अवर्णी लवक (Leucoplast) :-
शिम्पर (1885) ने वर्णक विहीन लवकों को ल्यूकोप्लास्ट छड़ाकार गोलाकार या अनियमित आकार के होते हैं तथा अधिकतर पादपों के संग्रहकारी अंगों जैसे भूमिगत अंग, फल आदि में पाये जाते हैं। इनमें संग्रहित कार्बनिक पदार्थ के अनुसार ये पुनः तीन प्रकार के होते हैं अधिकांश में लेमिली (Lamellae) पाये जाते हैं कहा।
(i) मंडलवक (Amyloplast) :-
इनमें स्टार्च का संचयन व संघनन होता है।
(||) तेल लवक (Elaioplast) :-
इनमें तेल या वसा के रूप में भोजन संचित रहता है। सरसों, मूंगफली के बीजों में पाये जाते हैं।
(III) एल्यूरोप्लास्ट या प्रोटोप्लास्ट (Aleuroplast):-
Hइनमें प्रोटीन कण या गुलिकाएं संचित होती हैं। दालों के बीज पत्रों में पाये जाते हैं। जब किसी पादप को लम्बे समय तक अंधेरे में रखा जाता है तो इसमें रंगहीन ऐटियोप्लास्ट (Etioplast) बन जाते हैं। इनमें वसायें व वाष्पशील तेल होते हैं। प्रकाशित होने पर ये पुनः परिवर्तित हो जाते हैं।
2. वर्णीलवक (Chromoplast) :-
Gइनमें पर्णहरित को छोड़कर अन्य रंग जैसे लाल, नारंगी, रंग के केरोटीन तथा पीले रंग के जैथोफिल वर्णक पाये जाते हैं; इन लवकों में लैमैली नहीं पायी जाती है। इनमें प्रकाश संश्लेषण नहीं होता है। वर्णी लवक फलों के छिलकों एवं पुष्पों की दलों की कोशिकाओं में मिलते हैं। टमाटर, गाजर, लाल मिर्च में देखा जा सकता है। ये पुष्पों के दलों को विभिन्न रंगप्रदान करते हैं, जिससे कीटों के आकर्षित होने से परागण की क्रिया विधि होती हैं।
3. हरित लवक (Chloroplast):-
_क्लोरोप्लास्ट शब्द का गठन शिम्पर (1885) ने किया ये पर्णहरित युक्त हरे रंग के लवक हैं जो प्रकाश संश्लेषण का कार्य करते हैं। अधिकांश शैवाल कोशिकाओं में एक हरित लवक होता है जबकि विकसित पादपों की प्रति कोशिका में 20 से 40 हरित लवक मिलते हैं। उच्च पादपों में हरित लवक गोल, अण्डाकार अथवा डिस्क के समान होते हैं जबकि शैवालों में ये भिन्न-भिन्न आकृति के होते हैं। जैसे क्लेमाइडोमोनास में प्यालेनुमा, स्पाइरोगाइरा में सर्पिल रिबन समान, यूलोथ्रिक्स में मेखलाकार जिग्नीमा में ताराकार आकृति के होते हैं। आवश्यकता एवं परिस्थिति के अनुसार विभिन्न लवक एक दूसरे प्रकार में परिवर्तित हो जाते हैं। जैसे अपरिपक्व मिर्च व टमाटर पकने पर हरे से लाल हो जाते हैं।क्लोरोप्लास्ट शब्द का गठन शिम्पर (1885) ने किया ये पर्णहरित युक्त हरे रंग के लवक हैं जो प्रकाश संश्लेषण का कार्य करते हैं। अधिकांश शैवाल कोशिकाओं में एक हरित लवक होता है
जबकि विकसित पादपों की प्रति कोशिका में 20 से 40 हरित लवक मिलते हैं। उच्च पादपों में हरित लवक गोल, अण्डाकार अथवा डिस्क के समान होते हैं जबकि शैवालों में ये भिन्न-भिन्न आकृति के होते हैं। जैसे क्लेमाइडोमोनास में प्यालेनुमा, स्पाइरोगाइरा में सर्पिल रिबन समान, यूलोथ्रिक्स में मेखलाकार जिग्नीमा में ताराकार आकृति के होते हैं। आवश्यकता एवं परिस्थिति के अनुसार विभिन्न लवक एक दूसरे प्रकार में परिवर्तित हो जाते हैं। जैसे अपरिपक्व मिर्च व टमाटर पकने पर हरे से लाल हो जाते हैं।क्लोरोप्लास्ट शब्द का गठन शिम्पर (1885) ने किया ये पर्णहरित युक्त हरे रंग के लवक हैं जो प्रकाश संश्लेषण का कार्य करते हैं। अधिकांश शैवाल कोशिकाओं में एक हरित लवक होता है जबकि विकसित पादपों की प्रति कोशिका में 20 से 40 हरित लवक मिलते हैं। उच्च पादपों में हरित लवक गोल, अण्डाकार अथवा डिस्क के समान होते हैं जबकि शैवालों में ये भिन्न-भिन्न आकृति के होते हैं। जैसे क्लेमाइडोमोनास में प्यालेनुमा, स्पाइरोगाइरा में सर्पिल रिबन समान, यूलोथ्रिक्स में मेखलाकार जिग्नीमा में ताराकार आकृति के होते हैं। आवश्यकता एवं परिस्थिति के अनुसार विभिन्न लवक एक दूसरे प्रकार में परिवर्तित हो जाते हैं। जैसे अपरिपक्व मिर्च व टमाटर पकने पर हरे से लाल हो जाते हैं।
@(Mitos thread, chondrion granule; |mitochondria =एकवचन); सूत्रकणिका कोलीकर (1990) ने सर्वप्रथम इन्हें कीटों की रेखित शियों में देखा था। फ्लेमिंग (1882) ने उन्हें फाइलिया तथा शार. अल्टमान (1894) ने बायोब्लास्ट नाम दिया। इनकी खोज श्रेय फ्लेमिंग एवं अल्टमान को दिया जाता हैं। सी.बेंडा 897) ने इन्हें माइटोकॉन्ड्रिया नाम दिया। उसने इनको न्ड्रियोसोम (Chondr iosome) भी कहा। एफ.मिविस 904) ने सर्वप्रथम पादप कोशिकाओं में इनकी उपस्थिति देखी।
संरचना (Structure):-
@प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं के अतिरिक्त ये सभी। इसे कोशिकाओं में पाये जाते हैं। ये गोलाकार, छड़ी नुमा अथवा ये धागेनमा संरचना में होती हैं। इनकी औसत लम्बाई माइक्रोन और व्यास 0.5 से 1 माइक्रोन होता हैं। सामान्यतः इनकी संख्या एक कोशिका में 50 से 5000 तक हो सकती हैं। माइक्रो स्टोरी नामक शैवाल की कोशिका में एक एवं कछ एक कोशिकीय जीवों में 5 लाख तक इनकी संख्या पायी जाती हैं। माइटोकॉन्ड्रिया एक दोहरी झिल्ली से परिबद्ध कोशिकांग है। बाह्यकला सपाट जबकि अंतःकला में कई अंगुली के समान उभार पाये जाते हैं जो किरीटी, शिखी या क्रिस्टी (Cristae; एकवचन Crista) कहलाते हैं। अंतःकला एवं बाह्यकला के बीच 6-8nm की दूरी होती हैं। क्रिस्टल के कारण माइटोकॉन्ड्रिया की
क्रिस्टल की सतह पर 85A व्यास के कण 100A की दूरी पर स्थित होते हैं जिनका आकार टेनिस क्रिकेट नुमा होता है जिनको प्रारम्भिक कण या ऑक्सीसोम (Oxysome) या F, कण कहते हैं। ऑक्सीसोम आधार, वृत एवं सिर तीन भागों से मिलकर बनते हैं। ये फास्फोलिपिड एवं प्रोटीन से बने होते हैं। ऑक्सीसोम में ATP सिंथेटेस एंजाइम ऑक्सीकारक फास्फोरिलीकरण का कार्य करता है। अंत:काल पर श्वसन शृंखला एवं ऑक्सीकारक फॉस्फोरिलीकरण क्रिया के लिए उत्तरदायी एंजाइम भी पाये जाते हैं। मैट्रिक्स में डीएनए, आरएनए,705 प्रकार के राइबोसोम, जल, लवण एवं क्रेब्स चक्र के लिए आवश्यक सभी एंजाइम होते हैं। माइटोकॉन्ड्रिया का डीएनए गोलाकार, नग्न होता है। इसमें G+C की मात्रा A+T की तुलना में अधिक होती हैं। माइटोकॉन्ड्रिया में अपने समान नये माइटोकॉन्ड्रिया बनाने अर्थात स्वतः जनन की क्षमता होती है। यह क्षमता केवल कोशिका द्रव्य के अन्दर रहकर ही है, स्वतंत्र रूप से संभव नहीं हैं। अतः इनको अर्घस्वायत्तशासी (Semi Autonomous) कोशिकांग रासायनिक संगठन में प्रोटीन 65-70%, फॉस्फोलिपिड 25%, आरएनए, 0.5% कुछ मात्रा में डीएनए पाया जाता
माइटोकॉन्ड्रिया के कार्य (Function of Mitochondria):-
G(1) माइटोकॉन्ड्रिया को कोशिका का 'पावर हाऊस' या ऊर्जा घर' कहा जाता है। इसमें ऑक्सीश्वसन के दौरान निकलने वाली ऊर्जा एडिनोसीन ट्राई फॉस्फेट (ATP) के रूप में संचित रहती है। जब कोशिका को विभिन्न जैविक क्रियाओं के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती हैं तो यह एडिनोसीन ट्राई फॉस्फेट (ATP) एडिनोसीन डाई फॉस्फेट फॉस्फेट अणु एवं ऊर्जा में टूट जाती है।
2) क्रेब्स चक्र-ग्लाइकोलाइसिस के द्वारा ग्लूकोज अणु दो पाइरूविक अणुओं में टूट जाता है जिनका ऑक्सीकरण एक चक्रिय पथ के रूप में मैट्रिक्स में उपस्थित विभिन्न श्वसन एंजाइमों के द्वारा होता है। जिसे क्रेब्स चक्र कहते हैं।
(3) ऑक्सीफॉस्फोरिलेशन- यह क्रिया ऑक्सीसोम कणों में होती है जो माइटोकॉन्ड्रिया की भीतरी झिल्ली पर स्थित होते हैं। इस क्रिया में NADPH,, NADH, एवं FADH, का ऑक्सीकरण होकर ATP का निर्माण होता है।
(4) माइटोकॉन्ड्रिया प्रकाशीय श्वसन (Photorespiration) की क्रिया में भाग लेने वाला एक प्रमुख कोशिकांग है।
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